पूस महीना
(लता प्रासर के मगही कविता )
ऐलो पुसवा के महीनमा रामा सले सले।
लगे लगलो जड़बा बतास रामा हौले हौले।
खइहS सब नउका चाउर के पीठवा रामा गरमे गरमे।
पीठबे सेकयतय रामा बउआ के गोड़े गोड़े।
आदिया आउ गुड़बा किनयलय रामा घरे घरे।
हरदी मिलाई के हलुआ बनाबय रामा करे करे।
चूड़वा जे धमकय रामा हरियरका घरे घरे।
दहिया लपेटी सब खयिथिन रामा छीपे छीपे।
तीलीया कटाई काटी लड़ुआ बनैली रामा कारे कारे।
सेहो लड़ुआ पेठैनु रामा धीआ दामाद के घरे घरे।
बूटबा खेसड़िया के सगबा गलैबय रामा हरे हरे।
भतबा पकइबय बउआ के खिलइबय रामा गरे गरे।
गौना के कनियैया घुघबे में नुक्कल रामा लाजे लाजे।
दुलहबा के दिनमा बितहय रामा राजे राजे ।
नौका नेहलिया तोसकबा अइलय रामा जोड़े जोड़े।
नौका नेहलिया तोसकबा अइलय रामा जोड़े जोड़े।
कनिया दुलहबा करहय झिकझोरिया रामा संगे संगे।
पूस के दिनमा फूस होइ गेलय रामा हबरे हबरे ?
बुढ़बा बुतरूआ बचाइ के रखिह रामा जाड़े जाड़े।
.......लिखताहर- लता प्रासर
सुन्दर लगल
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