Sunday 29 April 2018

मगही लघुकथा -मुनकी / लेखिका -लता प्रासर


मुनकी के जरीगो से पढ़े के सोख हल। कयसनो किताब रहे ओकरा बिना पढ़ले न छोड़ हलय।  खाली पढ़बे नय कर हलय ओकर भासा भी अपनावे के कोशिश कर हलय।
लिखताहर- लता प्रासर


एक दिन मुनकी अपन भाय से कहलकय, बौआ कितब्बा में जैइसे लिक्खल हउ, ओइसहीं हमन्नी बोलिहं। बौआ  भी मान गेलय। मुनकी खूब खुस होलय।दुन्नो भाय बहिन हंसे लगलय। मुनकी हाली से कितब्बा लाबे घरेलू गेलय। ओकरा डर लग रहलय हल कि कोय ऐसे नाटक करते देखतय त बड़ी गोसयतय।

मुनकी के नाटक शुरू हो गेलय,नाटक चलाबे के जिम्मा मुनकीये के हलय।दुगो भाय एगो मुनकी इहे सब नाटक करे बला आउ इहे सब देखें बला।
तीनों के खुसी के ठेकाना नय हलय।तीनों हहा हहा के हंस रहलय हल।

मुनकी सभे के समझैलकय कि केकरा की बोलेला हय।बड़का बौआ तों इ बोलिंहं,छोटका बौआ तों इ बोलिंहं,हमें इ बोलबउ।एतना सब समझा के मुनकी अब तैयार हलय नाटक सुरु करेला।मुनकी के ज़िन्दगी के पहिला क्षन हलय जब उ हिंदी भासा में बात करतय हल।

इ नाटक के बहाना से मुनकी हिंदी सीखेला उताहुल हलय।मुनकी के लग रहलय हल कि उ हिंदी के मास्टर हो गेलय ह। ओकर खुसी से मुनकी के मुंह चमचमा रहलय हल। ओकरा देख भाइयो सब खुब खुस हलय ।काहे कि ऐसन पहिला बार होबे बला हलय।
बड़का बौआ  -  दी..दी तु..म इस...कुल     कब जा..ओ...गी?

छोटका बौआ - हां...दी..दी    बता.....ओ.... ना।

मुनकी - मैं....ने   क..हा     न     तंग     मत     क....रो    मैं    न...हीं ब..ता...उं...गी....

थपाक.......
तभिये मुनकी के गाल पर जोर दार आवाज होलय।
आउ ओकरा घसटा के घरे ले गेलखीं चच्चा जी भरपेट मार के पुछलखिन आउ अंगरेजी बाचम्ही।होस में रह।
माय टुकुर टुकुर मुह निहार रहलय हल।
बाकी मुनकी मनेमन जहिने कसम खैलकय ।
हिंदी पढ़ के देखा देबौ।
...

लेखिका - लता प्रासर