Tuesday 9 October 2018

निरमोहिया छिटका मार के चल गेलो - आसिन पर लता प्रासर रचित मगही ललित निबंध

आसिन

देख देख के रहिया ,पथरा गेलो अखिया आउ भादों निरमोहिया छिटका मार के चल गेलो। आसरा लगले रह गेलो कि झमर झमर पनिया बहतो हल। टाल टुकुर पियासले रह गेलय। बुढ़ पुरनिया कह हखीं।
"भरल भादों टाल डुबावे।

दलिहन तेलहन घर भराबे।।"


अब तो जे हो गेलो से हो गेलो।आसिनो कय दिन बीत गेलो। हथिया नक्षत्र में भी पानी नय पड़लो।कयसे जुआन किसान सब मट्टी से कमैथिन। दिन रात तप कर के किसान फसल उपजाबे ल बेताब रह हखीं। गामे गाम विरान लग हय आदमी बिना। गांव जाके देखहो कयसन धात धात कर हय गल्ली कुच्ची।



जखनी हमनहीं सब छोटे गो हलिय। इहे गलियन में धमकुचड़ी मचल रह हलय। आसिन में बैल के मान बढ़ल रह हलय। किसान सभे बूंट, खेसारी, मसुरी, केराव(मटर), सरसों, तीसी, सूरजमुखी लेके टाल के खेत में लगाव हलखीं। टाल के खेत सब नौ महीना के विरानी के बाद आबाद होवे लग हय आसिन में। धरती माय के कोख में अंकुरे लग हय जिनगी। रात के सीतल बियार आउ दिन में घामा सबकोय के बेचैन करले रह हय।



पहिले पीतरपछ फिनु दसयं ।अमसिया के राते में दादी, माय, फुआ, चाची सभे करिया कपड़ा में कच्चा-पक्का बालू, बैर कें कांटा,बबूल के कांटा, हींग जमायन आउ पता नम केतना चीज मिलाके जंतर (माने छोटे गो पोटली) बना के घर में सबकोय के पेहना देल हलखिन। बिस्वास हलय कि इ जंतर पेन्हावे से सब अलाय बलाय से दूर रहथिन।

जयसे जयसे हमनी सब आधुनिक होल जा हीय। ई सब पर बिस्वास नय होवहय।अब तो बुतरूअन के कजरो नय लगाव हखीं सब। हां ई बात दीगर है कि अब मेकअप जरूर पोतल जा हय। पहिले सबकुछ घरे में बनावल जा हलय,अब सब बजारे पर ओठगल रह हखीं।  दु दिन बाद दसयं हेल जयतो सब अप्पन अप्पन खियाल रखिहा।
इहे सुभकामना के साथ सबके परनाम
.........

लिखताहर - लता प्रासर
लिखताहर के मगही वीडियो देख' - इहाँ क्लिक कर'
प्रतिक्रिया भेजे खातिर ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com

Saturday 22 September 2018

भादो में बरखय बदरिया / मगही कविता - लता प्रासर

भादो में बरखय बदरिया 
कवयित्री - लता प्रासर 


भादो में बरखय बदरिया
नगरिया भींगय हे सखी

जयसे जयसे चमकय बिजुरिया
जिया मोरा तड़पय हे सखी
भागहय रहिया बटोहिया
घर कयसे जैबय हे सखी
भादो में बरखय बदरिया
नगरिया भींगय हे सखी

घेरले हय कारी बदरिया
चुऐ सगरो ओहरिया हे सखी
नुकी गेलय घर के जबैया
बरबा की छैया हे सखी
भादो में बरखय बदरिया
नगरिया भींगय हे सखी

पनिया से भीगलय बदनमा
आउ लाज से मनमा हे सखी
घुरी घुरी देख के बटोहिया
हले से विंहसय हे सखी
भादो में बरखय बदरिया
नगरिया भींगय हे सखी

टोह होंथीं हमरों सजनमा
छनकहय मनमा हे सखी
छप छप छहलहय पनिया
रहिया में होतै देरिया हे सखी
भादो में बरखय बदरिया
नगरिया भींगय हे सखी.

.....
कवयित्री- लता प्रासर
मोबाइल नंबर- 7277965160
मेन पेज पर जाने के लिए क्लिक कीजिए- biharidhamaka.org





Monday 2 July 2018

खांटी किकटिया -अश्विनी कुमार पंकज के मगही उपन्यास पर एगो पत्र / अस्मुरारी नन्दन मिश्र

 सामाजिक-आर्थिक दसा-दिसा के पिछु-पिछु रहs हय दार्शनिक मत

चित्र साभार- Ak  Pankaj  के फेसबुक कवरफोटो से
आदरजुकुर अश्विनी कुमार पंकज जी,

परनाम करीथिअय।

अपने के लिखल उपन्यास "खांटी किकटिया" पढ़लिअय। मगही के मानक रूप का हे, अउ ओकर निरधारन होल हे कि नञ्, ई नञ् पता हे। एकर पर अलग-अलग जगह बोली रूप में भेद होवे के कारण कहूं-कहूं अपने के भासा पकड़े में तनि दिक्कत भेल, बाकिर फिर भी पढ़े में मजा अयलक। 

सबसे पहले तो अपने के बधाई और धन्यवाद कहे के मन करित हे, कि अपने मगही में एतना गंभीर अउ सार्थक रचना देवे के काम कयली हे। पक्का तौर पे ई काम मगही के इतिहास में आद करल जयतय। कहूं-कहूं तो भासा अयसन रूप ले लेलकय हे जैसे पालि अउ प्राकृत के नगीच पहुँचल हो। खास करके दर्शन और सास्त्रारथ के समय। ई देखके अप्पन भासा पर बिस्बास बढ़ गेलक कि एकर में गंभीर विषय के कहे के ताकत हे अउ जदि काम करल जाय तो ई भाषा कौनो तरह के भाव-बिचार परगट करे में समर्थ हे।

मक्खलि गोसाल के बारे में जादे न जानs हलिअय अउ अभी भी अपने के किताब से जादा न जानित हिअय। इनखर चरित जैसन मजगूत गढ़ल गेलय हे कि असली चरित पर बिस्बास बढ़ जा हे। लेकिन पटना में ई किताब के लोकार्पण में अपने के सुनलिअय हल कि मक्खलि के जिनगी के बारे में बहुत जानकारी मौजूद न रहे के कारण बहुत कुछ कल्पन के सहारा लेवल गेलक हे। यही बात से बहुत सवाल ठाड़ा होवे लगs हय। काहे कि एकर में बरधमान के अजीब तरह से सामने रखल गेल हे, पूरे खलनायक के जुकुर। अचरज तो ई हे कि एकर नायक हथ तो एकदम्मे 'दोषरहित' और खलनायक हथ तो एकदम से 'दूषणसहित'। जबकि ई ढंग कम-से-कम आधुनिक साहित्य के नञ् हे। अउ बरधमान जैसन चरित के ई रूप में पेश करे से का किताब अउ ओकर बाकि चरित के प्रति बिस्बास बनल रह सकs हे?

अपने भूमिका में लिखलथिन हे कि जैन दोआरा गढ़ल झूठा खिस्सा उलट देल गेलय हे। हमरा जरिको न पता कि सच का हे, लेकिन महावीर के जौन रूप मन में बसल हे कि सीधा बिस्बास करला कठिन हो जा रहलक हे। मानलिअय कि बरधमान श्रेणिक हलथि अउ उनखर पास जे मत हे ऊ बेपारी अउ भंडरिया के बास्ते जादे बेस हे, लेकिन ऊ मत श्रेणिक के भी ऊही जुकुर साथ देवे ओला हे ई तो नञ् दिखs हे। ओकरा पर जे अंतिम जुद्ध देखावल गेलय, ऊ तो अउ अंतर्विरोध के नियन लगित हे। काहे कि चाहे चेटक होत चाहे कुनिक दुनों तो श्रेणिक समाज से ही हथन, तब मक्खलि अउ उनकर संघतियन के एगो के पच्छ काहे लगी चुने पड़लय। का उहां सामाजिक अउ आर्थिक से जादे दार्शनिक कारण बड़ हो गेल? जबकि अपने पूरे उपन्यास में देखैलथिन हे कि दार्शनिक मत सामाजिक-आर्थिक दसा-दिसा के पिछु-पिछु रहs हय?

अयसन भी देखल गेलय कि कुछ परसंग जैसे एकदम से आगू-पिछू से कट्टल हय। बस ओकर महत्त्व एही हे कि केकरो नीचा अउ ऊंचा दिखा रहलक हे। जैसे दूगो चुंदी ओला मनुख के दोआरा एगो जनाना के साथ जबरदस्ती करे के कोसिस करे ओला परसंग। ई परसंग असल खिस्सा से कजो नञ् जुड़ल हे, बस 'चुंदी' के बारे में एक गढ़ल खिस्सा जुकुर दिखायत हे। अयसन में तो जे अपने बरधमान के मुह से कहैलथिन हे, ऊ अपने पर भी आरोप जुकुर मढ़ल जा सकs हे कि " खिस्सा के बड़ असर होवs है। एक बेर कह देला बाद जुग-जुग चलs है। सासतर आउ सांसत से भी जादे मार करs है। से लेल कहैत हीवs, खिस्सा बनावs।" तो का ई भी बनवल खिस्सा ही हे?

सवाल तो एगो पहले भी उठलय हल, जब अपने पहले तो डॉ॰ धर्मवीर के मत के काटलथिन कि जब जाति परथा भी नञ् रूप लेलकय हल, तब मक्खलि के शूद्र रूप में कैसे मानल जा सकs हे, लेकिन ओकर तुरते बाद अपने पूरा बिसवास से बेहिचक होके कहलथिन कि "उ आदिबासी हलथी।" अचरज तो ई हे कि ई 'आदिबासी' शब्द उपन्यास में भी आगे उपयोग में आवित चल गेल हे। बेस ई होल कि कुछ दूर गेला बाद एकर प्रयोग से बचल गेल हे। हम्मर जानते 'आदिवासी' शब्द ओतना पुरा‌न नञ् हे। (एहीं पर आद पड़ित हे कि कै गो मुहाबरा आउ कहाबत भी अयसन प्रयोग में अयलक हे, जे बाद के बुझा हे।)

एगो शंका तो इहू हे कि जादेतर देखल गेलय हे कि बलिदान के बाद केकरो मत अउ संप्रदाय दोगुन-तिगुन गति से फैले लगs हे, लेकिन मक्खलि के साथ अयसन काहे होलय कि ई बलिदान के बाद जैसे सिकुड़ गेलय, बाद में कोय नामलेउआ भी नञ् बचलय?

जे हो, उपन्यास पढ़के मजा अयलक। जबकि पढ़े में अपन बेअस्तता के कारण जादे समय लगयली, लेकिन खिस्सा कहे के तरीका खिस्सा से जोड़ले रहलक। कुछ शंका हलक से अपने के सामने रख देली। एकरा वैसही समझूं जैसे कि एगो गिरहस्थ अपन शंका कौनो श्रमण के पास रखलक हे।

दुबारा अपने के धन्यवाद कहित ही अउ उम्मेद करित ही कि अपने अयसने आउ पढ़े के देबय।

अपने के-
अस्मुरारी नंदन मिश्र
................

आलेख - अस्मुरारी नंदन मिश्र
ईमेल- asmuraribhu@gmail.com
मगही उपन्यास लेखक अश्विनी कुमार पंकज का लिंक-  https://www.facebook.com/akpjharkhand
आप अपनी प्रतिक्रिया इस ईमेल पर भी दे सकते हैं- editorbiharidhamaka@yahoo.com

लेखक - अस्मुरारी नंदन मिश्र

Sunday 29 April 2018

मगही लघुकथा -मुनकी / लेखिका -लता प्रासर


मुनकी के जरीगो से पढ़े के सोख हल। कयसनो किताब रहे ओकरा बिना पढ़ले न छोड़ हलय।  खाली पढ़बे नय कर हलय ओकर भासा भी अपनावे के कोशिश कर हलय।
लिखताहर- लता प्रासर


एक दिन मुनकी अपन भाय से कहलकय, बौआ कितब्बा में जैइसे लिक्खल हउ, ओइसहीं हमन्नी बोलिहं। बौआ  भी मान गेलय। मुनकी खूब खुस होलय।दुन्नो भाय बहिन हंसे लगलय। मुनकी हाली से कितब्बा लाबे घरेलू गेलय। ओकरा डर लग रहलय हल कि कोय ऐसे नाटक करते देखतय त बड़ी गोसयतय।

मुनकी के नाटक शुरू हो गेलय,नाटक चलाबे के जिम्मा मुनकीये के हलय।दुगो भाय एगो मुनकी इहे सब नाटक करे बला आउ इहे सब देखें बला।
तीनों के खुसी के ठेकाना नय हलय।तीनों हहा हहा के हंस रहलय हल।

मुनकी सभे के समझैलकय कि केकरा की बोलेला हय।बड़का बौआ तों इ बोलिंहं,छोटका बौआ तों इ बोलिंहं,हमें इ बोलबउ।एतना सब समझा के मुनकी अब तैयार हलय नाटक सुरु करेला।मुनकी के ज़िन्दगी के पहिला क्षन हलय जब उ हिंदी भासा में बात करतय हल।

इ नाटक के बहाना से मुनकी हिंदी सीखेला उताहुल हलय।मुनकी के लग रहलय हल कि उ हिंदी के मास्टर हो गेलय ह। ओकर खुसी से मुनकी के मुंह चमचमा रहलय हल। ओकरा देख भाइयो सब खुब खुस हलय ।काहे कि ऐसन पहिला बार होबे बला हलय।
बड़का बौआ  -  दी..दी तु..म इस...कुल     कब जा..ओ...गी?

छोटका बौआ - हां...दी..दी    बता.....ओ.... ना।

मुनकी - मैं....ने   क..हा     न     तंग     मत     क....रो    मैं    न...हीं ब..ता...उं...गी....

थपाक.......
तभिये मुनकी के गाल पर जोर दार आवाज होलय।
आउ ओकरा घसटा के घरे ले गेलखीं चच्चा जी भरपेट मार के पुछलखिन आउ अंगरेजी बाचम्ही।होस में रह।
माय टुकुर टुकुर मुह निहार रहलय हल।
बाकी मुनकी मनेमन जहिने कसम खैलकय ।
हिंदी पढ़ के देखा देबौ।
...

लेखिका - लता प्रासर

Saturday 3 March 2018

याद आबS हय सैंया / मगही चैता गीत - लता प्रासर

याद आबS हय सैंया

जखनी लगS हय पछिया हाबा ए रामा
याद आबS हय सैंया 
याद आबS हय सैंया ए रामा चैता मासे।

झिर झिर बहय पछियबा मारय झकोर ए रामा
याद आबS हय सैयां 
याद आबS हय सैंया ए रामा चैता मासे।

सैंया मोरा बसS हय विदेसबा ए रामा
याद आबS हय सैंया।
याद आबS हय सैंया ए रामा चैता मासे।

चुड़िया, टिकुलिया, गहनमा नय भाबय ए रामा
याद आबS हय सैंया
याद आबS हय सैंया ए रामा चैता मासे।

लिखि लिखि चिट्ठिया भेजलियैय ए रामा
याद आबS हय सैंया
याद आबS हय सैंया ए रामा चैता मासे।

सैंया बिनु सोभय नय सेजरिया ए रामा
याद आबS हय सैंया
याद आबS हय सैंया ए रामा चैता मासे।
......

कवयित्री - लता प्रासर
पता-  लोहरा, नालंदा, बिहार

कवयित्री- लता प्रासर



Thursday 22 February 2018

लाली लाली फूलवा आउ लाले लाले पतवा जी / कवयित्री - लता प्रासर

लाली लाली फूलवा आउ लाले लाले पतवा जी
जयिसे लागय सुगबा के ठोर जी।

सगरो देखैयो बालम लाले लाल जना हय 
फूटी गेलय कोंहड़ी फुनगिया नितरा हय
बाग बगईचा बालम मनमा भरमाब हय
देखिये देखिये हम्मर मनमा जुड़ा हय 

अबकी फगुनमा बालम चुनरिया रंगयिहा छिटेदार जी
सेहो पहेनी बालम होली खेले जयिबो
देवरा करहय गुहार जी।

देस परदेस से ननदोसी ऐलखिन
होली संग खेले ल हमार जी
पूरी पकवान बलमु हमहुँ बनयिबो
खाय ल बोलयिहा दोस्त यार जी

होलिया मनयिहा बालम मनमा रंगयिहा
लोग सब देख के सिहाय जी।

......
लेखिका - लता प्रासर

Tuesday 30 January 2018

मगही कविता -आबS बालम / लता प्रासर

फागुन अइलय बालम तुहूँ चली आवS
गौना कराके हमरा ससुरे ले आवS
सभे सखि गावहय हमरा रिझावहय
कर हकय हंसिया ठिठोली जी

जबे तु अइहा बालेम टिकुली ले अइहS
लाले रंग चुनरी रंगयिहा गोटेदार जी
अंगिया सिलयिहा खुबे फैसनदार जी
रंग महाबर आउरो होठ लाली जी

किया तोरा बालेम जी जिया नय धड़कहो
काहे करहS एते देर जी
दुई चार लोग बोलाई ले अइहS
गौना कराइके हमरा ले जयिहS

धानी हमरो धड़कय जियरा
तोहरा से मिले ल मन बउरा हय 
लाज के मारे हम चुप रही जा ही
मने मे तोरा से खूबे बतिया ही.
.....
लिखताहर - लता प्रासर
पता- लोहरा हरनौत
ईमेल- kumarilataprasar@gmail.com


Tuesday 23 January 2018

बसंती विरह / कवयित्री- लता प्रासर

अइलय बसंत,नहिं पिया मोरे अइलन


सखि हे अइलय बसंत,नहिं पिया मोरे अइलन
रहिया देखS ही सखि हे काहे नहिं अइलन
फुलबा खिलS है सखि हे रंग बिरंग के 
पिया बिनु सखि हे कौनो रंग नय भावै

हरियर हरियर पतबा सखि हे जियरा जराबS हय
गाछ बृक्ष सखि हे हलसल करहय 
हलसी हलसी हमरा मुंहबा चिढ़ाबS हय
झुमी झुमी राग बसंत के गाबS हय

कयिसन नौकरिया करS ह बलेमु जी
चलि आबS छोड़ि के ऐसनो नौकरिया
बीती गेलय जड़बा, अइलय बसंत 
तोरा बिनु पियबा कटय न दिन रतिया

घर ही मे पियाजी बाग लगईहS
धान आउ गेहुंआ के खेतिया करईहS
बुटबा खेसड़िया के झंगरी लगईहS
सरसों के फुलबा से बसंत के बोलईहS

अइलय बसंत पियाजी तुहूँ चलि आबS
अपने ही हथबा से चुड़िया पेनहाबS
धानी रंग के लंहगा आउ चुनरी ओढ़ाबS
हमरा संग पियाजी बसंत मनाबS

तोहरो सनेस पियाजी सुनी हम गाबही
रह रह मनमा के अपने समझाबS ही
ऐहो बसंत लागी तोरा हम मनाबS ही
तोरे हम जिनगी के सिंगार मानS ही।
...

लिखताहर - लता प्रासर
पता- लोहरा, नालंदा

Monday 15 January 2018

तीलवा तिलकुटवा न लयिला ए बाबुजी / कवयित्री- लता प्रासर

तीलवा तिलकुटवा न लयिला ए बाबुजी,कउची हम खइबय हो राम
हमरो करेजवा तरसय ए बाबुजी, कयिसे बीततै सकरतिया हो राम

सभे कोय खा हय हरियर चुड़वा ए बाबुजी. हमरा नेमानो नय हो राम
भइया ल छाली भरल दहिया ए बाबु जी, हमरा नय मठबो हो राम

हरियर गदबा के खिचड़ी ए बाबु जी,गद गद पकय हो राम
घीयबा से छौंकल खिचड़िया ए बाबु, चोखबा के साथे सब खाय हो राम

अचरबा पपड़बा सब लेलहो ए बाबुजी, चपड़ चपड़ खैलहो हो राम
सभे बहिनी मुंहबा तकलियो ए बाबुजी, खाय ल करेजबा फटलय हो राम

हमहूँ उड़यिबो गुड्डिया ए बाबुजी, उड़य हमर मनमो हो राम
हमरो करेजवा तरसय ए बाबुजी,कयिसे बीततै सकरतिया हो राम।
.......
कवयित्री- लता प्रासर
ईमेल- kumarilataprasar@gmail.com
प्रतिक्रिया ईहो ईमेल पर भेज सकS ह- hemantdas_2001@yahoo.com

लता प्रासर

Wednesday 3 January 2018

माघ के दिन बाघ, नहाय बला सब घाघ / लता प्रासर

माघ के दिन बाघनहाय बला सब घाघ

लता प्रासर
माघे जाड़ नय पूसे जाड़जेतने बियार ओतने  जाड़ ।
अरिये अरिये खेते खेते धनमा तो कटाई गेलय।
घरे घरे चुड़वा कुटाई गेलय,
चुड़वा कुटीये कुटी सबके पेठाई रहलय।
धी दमाद से रिस्ता हरियाले रहय।
किसनमा भगवान से मनैते रहय।

येही धनमा रिस्ता जोड़य।
येही धनमा मनमा जोड़य।
कुछ धनमा पुरहर ल रखल।
कुछ धनमा चुमौना ल बचैले हय।
ऐले मघबा बाजा बजतय।

मुनिया,रधिया, चुन्नी मुन्नी सबके गौना होतय।
गौना मे चुमौना होतय।
चुनिया के भयिबा साथे जयतय।
भाय बहिन के रिस्ता मे स्नेह बढ़ैतय।
जब मुनिया ससुराल पहुंचलय।
सास ससुर सब राह देखS हय।
ऐलय दुल्हिन लैलकय चुड़बा।
ये ही तो संदेश कहाबय।
घर घर जा के यही बटाबय।
सगे संबंधी के चुड़बा से दिल जोड़ाबय।

माघ माघ सब माघ रटS हय।
जब हव्वा हिलोरा मारय।
आग काठी सब ठंढ पड़ल हय।
नदिया के पनिया सुखे लगलय।
ताल तलैया सूना पड़लय।
धान के बाद जे गेहूंआ लगलय।
पनिया पनिया करहय।

हरियाली पर पियरी चढ़ल हय।
सरसो पियर मनमा हरियर।
कैसन सब पर खुमारी चढ़ल हय।
माघ हवा मे हिलोरा मारय।
फुलबा सरसों के कालीन बनल हय।
जियरा तरसय, मनमा हरसय।
सरसो से गले मिलावे ल।
जब सरसोइया झन झन बजय।
गोरी के याद देलाबS हय।
मनमा के बहकाबS हय।
सरसो के झन झन सुन सुन के।
कोयलियो नाचS गाबS हय।
पियबा के याद दिलाबS हय।

बूट के गादाकेराव के गादा।
मथबा पर किसनमा लादा।
.......
  
लिखताहर- लता प्रासर
पता- लोहरा हरनौत
ईमेल- kumarilataprasar@gmail.com