कविता
मातृभाषा दिवस के अवसर पर
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मिठका कुइयाँ भीड़
एक डोल पानी तो भर द
कोय माँगे गंगा, कोय चाहे जमजम
कोय-कोय अमरित ले साँस लेवे थमथम
हमनी के एही सब नीर
एक डोल पानी तो भर द
मिट्ठा तो एकर ऐसन है पानी
चीनी घोरल जैसन मगही बानी
अदरा के जैसन खीर
एक डोल पानी तो भर द
जेठ के दोपहरी में तरल-तरावट
पूस के भोरवा में भाप गरमाहट
औरे दिन मन के मीर
एक डोल पानी तो भर द
ओकरे से पुजा होवे ओकरे से सुद्धी
हमनी के ओकरे से जुड़ल चौहद्दी
ओकरे से बल और बीर
एक डोल पानी तो भर द
देवाली-देवाली में दीया जलैलूँ
छठवा में ओकरे में अरघ चढ़ैलूँ
होलिए में ओहिजे भीड़
एक डोल पानी तो भर द
एक डोल घरे ले एक डोल दूरा
गइया के नाद में एक डोल पूरा
एक डोल साधू-फकीर
एक डोल पानी तो भर द
चाहे डोले धरती चाहे आवे परलय
चाहे धूरी-धक्कड़ में सब हो जाय लय
एकरा में बचल रहे नीर
एक डोल पानी तो भर द।
.....
कवि - अस्मुरारी नंदन मिश
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