Monday 1 July 2019

बरसात पर दू गो कविता / लता प्रासर

बरसाती गर्मी बढ़ गेलो ह।हर हर पसेना चुए लग हय। मेहनत के पसेना में बड़ी खुशबू लग हय। आझे फिनु एगो खिस्सा सुनाब हकियो।
झलिया बड़ी गरीब हलय आउ ओकरे साथे पढ़ हलय बुल्की उ पैसाबला के बेटी हलय। दुनो के घर एक्के जगह हलय। एगो के कोलिया के इ पट्टी आउ दोसरका के उ पट्टी। दुन्नो एक्के इसकूल में पढ़S हलय। झलिया भोरे भिनसरे उठ के बोझा बिण्डा ढोबे चल जा हलय। हुंआ से आके पढ़ें जा हलय। एन्ने बुल्की मटकते-मटकते उठ हलय आउ इसकुल जाय में नौ नखरा करS हलय।
झलिया के बाबूजी बड़ी मेहनत करS हलखीं। बाकी के.......

बरसात-1
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मौसम के मिजाज बदल गेलो ह
सूरजबा के बदरा झांपले हो
मन मस्क हो जिया कस्क हो

बदरा भोरे से झमझमैते हो
तातल भुइयां सथा रहलो ह
पियासल खंधा नरम होलय

गामे गामे धान बुनाय लगलो
किसनमा के जी हरियाय लगलो
अदरा में बदरा मंडराय लगलो

नाली पमल्ला उपछाय लगलो
शहर के गली में छप छप पानी
तभियो कनिया शहर के दिवानी

बाल बुतरूअन मेघ से नहा के
झूम हय मनमा गेलय बता के
खुश होलय खूभे नाव बना के

बूढ़ पुरनिया भी मुस्कखीं भैया
पानी ल तरसल हल सभे गे दैया
दाल बला पुरी बनाब हय मैया

टाल टुकुर में खेत जोता हो
आउ बगल में मकइया बुना हो
सभे पियाज उखड़ गेलो ह
मौसम के मिजाज बदल गेलो ह!
....

बरसात-2

बीती गेलय जेठ महीनमा 
से बून नहीं परहय जी
धीमे-धीमे अइलय आषाढ़ 
से बून नहीं परहय जी
दुई चार दिन गरमयलय 
आउ झीसी झीसी परे लगलय जी
कोई चलाबहय ट्रेक्टर
आउ कोई पावरटीलर जी
टुनटुन घंटी बजैते
बैलबा पहुंच गेलय खेत
मथवा पर धान के मोटरिया
किसनमा चललय मोरी पारे जी

बाबा लगाबS हलखीं
मंसुरिया, सीतबा, नकजमाईन,
बासमती, बोगहा, कतरनी,
चूड़ा आउ चाउर से 
धमकहलय घर आउ दलान

बदललय जमाना
बदल गेलय धानमां
बउआ लगाबS हखीं
कंचन, जौहर सुप्रीम,
सोना, सोनम लोकनाथ
खाद आउ खल्ली से
अब उबज हो धान
ले रहलो ह सबके परान

ऊंचे-ऊंचे खेतबा में राहड़ बुनैतो
आउ तरी में लगतो मकइया
अभीये बुनैतो साग आउ सब्जीया
जैसे-जैसे बरखहय बुनमा
किसनमा के हरखS हय मनमां!
...

लिखताहर - लता प्रासर
लिखताहर के ईमेल आईडी - kumarilataprasar@gmail.com
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