Thursday 9 November 2017

सब साथी के स्नेह / लता प्रासर

सबसे पहिले हम उनका सब के परनाम करही जे हमर दुख सुख के अनुभूति के समझे के कोशिश कैलखिन।आज हमरा समझ मे आवे लगलय कि जिनकर करेजा बड़गो होव हय ,उनकर आगे मुह खोले नय पड़ हय।

हम तो अप्पन दुख केकरो नय बतैलिय,बाकि जे हमरा समझ हखिं उ समझ गेलखीं कि हमरा केतना ठेस लगल हय। उनका सब के हम फेर से गोड़ छु के परनाम कर ही।

रहीम जी कहलखिन ह कि ः


रहिमन निजमन की व्यथा मन ही राखो गोय,

सुन अठिलैहे लोग सब बाटि न लैहे कोय।

इहे वचन धियान मे रख के हम आझ तक केकरो से कुछ कहे के साहस नय कैलिय।बाकि आझ हमरा इ जरूर समझ मे आव हय कि जे सहृदयी साथी होव हखीं उ ऐंठे से जादे बचाबे के कोरसिस कर हखी।

आझ सब साथी के स्नेह से हमर करेजा बड़गो हो रहलो ह । तोहनी सब के सहयोग से कुछ करे के लिखे के मन कर हको।

फेर बतिऐबो 
अखनी परनाम
लता प्रासर
लिखताहर
अगहन पचमी अन्हरिया सं. २०७४



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