Wednesday, 25 October 2017

छ्ठ पर्व पर नानी घर के याद आ रहलो हS / लता पराशर

आज छठ के गीत सुन के हमरो कुछ कहे के मन कर रहलो ह।


हमरा आजहूं याद हय कि छठ समय ऐते ही नानीघर जाय ल मनमा छटपटाय लग हलय। नानीघर मे छठ के समय जे आजादी हलय आज यादे बन के रह गेलय।

अखनियो मन कर हय दौड़ के नानीघर जांउ। बाकि समय बीतलय शहर मे जीये के सुविधा जिनगी के बेवस कयले हय।

आज सगरो छठ के धूम मचल  हय ,सब अपन अपन सगा संबंधी आउ जान पहचान बालन के घरे जा जा के परसादी पा रहलखीं हँ।

आझे खरना हय। बाकि आझही रात से कलहे के तैयारी शुरु होवे लग हय।

दुपहरे से सब घाट पर जाय लग हखीं, हुंआ जाके सब सूरज भगवान के डूबे तक उनकर अरघ दे के पराथना कर हखीं, कि घर परिवार के सुख शांति रहे। धन धान्य बनल रहे।

औरत मरद ,बाल बुतरु सभे मिलजुल के एकर सादगी के धियान रख हखीं। जेतना भी परसाद बनाबल जा हय।सब घरे मे तैयार करल जा  हय।

सांझ अरघ के बाद भोरे के अरघ के तैयारी कैल जा हय।

फिर खुशी खुशी सब अपन अपन घर जा के नया उमंग से अपन जिनगी के काम मे लग जा हखी।
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लेखिका - लता पराशर

लेखिका के ईमेल- kumarilataprasar@gmail.com
आप अपनी प्रतिक्रिया इस ईमेल पर भी भेज सकते हैं- hemantdas_2001@yahoo.com

छठ पर्व

Monday, 23 October 2017

लता पराशर के अनेक मगही कविता

कविता- एक




मैया आ गेलौ देबाली,हमरा दे दे तू फटाका।
घर से बाहर चौरहबा पर हमहु करबौ धमाका।
मैया दे दे तू फटाका।
बेटा दुनिया में अन्हार भरल हय,
नय छोड़िहं फटाका।
देख जमाना कैसन अइलउ,
गाय के गोबर मिलौ नय कनहु,
अंगना कइसे निपइतउ।
इ सब बतिया छोड़ के मैया,
दे दे तू फटाका।
(रचनाकार-  लता पराशर)
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कविता- दू

देश मुखिया ऐलखिन पटना,
बउआ देखे ल परसान,
सगरो देख भीड़ लगल हय।
छोटका बुतरुआ कन्हा चढल हय,
देखे ल इ घटना।
देश के मुखिया ऐलखिन पटना।
सेवा टहल सब कर रहलखिन,
जब से मुखिया ऐलखिन।
सब के मुंह पर यही रटना,
देश के मुखिया ऐलखिन पटना
टे टे पो पो के शोर बढ़ल हय।
राज सड़क जब बन्द पड़ल हय।
मोसकिल ओजा अटना
देश के मुखिया ऐलखिन पटना।
(रचनाकार-  लता पराशर)
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कविता- तीन

संगी साथी सब याद कर होतखीं,
इहे सोच के कुछ बतियाबे के मन करलो,
त बतियाबे लगलियो।
अइलय जे कातिक महीनमा
झूमय हम्मर मनमा
पावन दिनमा ना।
सखि हे चलहो ने गंगा असननियां,
लयबो हम गंगा पनिया।
गंगा के पनिया सखि हे,
छीटबय घरबा दुहरिया,
मिट जयतय सभे मोर बलइया,
बजे लगतय घरबा में बधइया।
हमे नही जयबो सखि हे,
गंगा असननियां,नहि लइबो गंगा के पनिया।
गंगा के पनिया सखि हे छूतहर हो गेलय।
बढे ओकरो से बिमरिया।
घर ही नहयबय सखि हे,
घरहीं से करबय परनाम।
भूल चूक तबे माफ होतय
जब हम्मर गलती के एहसास करैबहो।
सब के गोड़ लागी।
(रचनाकार-  लता पराशर)
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कवयित्री का ईमेल- kumarilataprasar@gmail.com
कवयित्री का परिचय- लता परासर हिन्दी और मगही दोनो भाषाओं में अपनी रचनाओं के लिए जानी जाती हैं. मगही भाषा के प्रचार-प्रसार में इनका योगदान सराहनीय है. मगही भाषा में प्रथम ई-रिपोर्ट इन्होंने किया है जो बिहारी धमाका ब्लॉग के मुख्य पेज पर प्रकाशित हो चुका है. पेशे से यह शिक्षक हैं और अनेक संघर्षों को झेलते हुए इन्होंने दो विषयों में स्नातकोत्तर की उपाधि सफलतापूर्वक प्राप्त की है.
मगही भाषा में पहली ई-रिपोर्ट लता पराशर के द्वारा बिहारी धमाका ब्लॉग पर की गई, हमारा यह दावा अभी तक कायम है. उस मगही रिपोर्ट को मगही और अंग्रेजी भाषा में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए -  http://biharidhamaka.blogspot.in/2017/07/release-of-ghamandi-rams-book-report-in.html
कवयित्री का लिंक- https://www.facebook.com/lata.prasar
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