आज छठ के गीत सुन के हमरो कुछ कहे के मन कर रहलो ह।
हमरा आजहूं याद हय कि छठ समय ऐते ही नानीघर जाय ल मनमा छटपटाय लग हलय। नानीघर मे छठ के समय जे आजादी हलय आज यादे बन के रह गेलय।
अखनियो मन कर हय दौड़ के नानीघर जांउ। बाकि समय बीतलय शहर मे जीये के सुविधा जिनगी के बेवस कयले हय।
आज सगरो छठ के धूम मचल हय ,सब अपन अपन सगा संबंधी आउ जान पहचान बालन के घरे जा जा के परसादी पा रहलखीं हँ।
आझे खरना हय। बाकि आझही रात से कलहे के तैयारी शुरु होवे लग हय।
दुपहरे से सब घाट पर जाय लग हखीं, हुंआ जाके सब सूरज भगवान के डूबे तक उनकर अरघ दे के पराथना कर हखीं, कि घर परिवार के सुख शांति रहे। धन धान्य बनल रहे।
औरत मरद ,बाल बुतरु सभे मिलजुल के एकर सादगी के धियान रख हखीं। जेतना भी परसाद बनाबल जा हय।सब घरे मे तैयार करल जा हय।
सांझ अरघ के बाद भोरे के अरघ के तैयारी कैल जा हय।
फिर खुशी खुशी सब अपन अपन घर जा के नया उमंग से अपन जिनगी के काम मे लग जा हखी।
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लेखिका - लता पराशर
लेखिका के ईमेल- kumarilataprasar@gmail.com
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