मगही कविता
देख अपने के राह तकते तकते
हम आ गेलियो गंगा मैया के कोरा में
अकेले कुछो निमन नय लगs हको
आवs न अंगुरिया पकड़ के बुतरू नियन घूरा द
सुरूजो डूबल जा हखूं
देखहो ने केतना सुन्नर लगs हय एज्जा
आवs हम्मर अंखियों तोहरे निरेख रहलो ह
इ गंगा के कछार पर हवा भी तोहरे याद देलावs हको
तोहरा बिना की बतिऐइयो ओकरा से
आवs हाली सुनी
सुनावs दिलवा के बतिया
एतना हम तो आ गेलियो
बाकि छूट गेलो तोहरे बिजुन
ऐइहा ले ले अइहा हमरो साथे साथे
गैइबो दुनो मिलके कुछ खटगर कुछ मिठगर!
....
कवयित्री - लता परासर "मगहिया दीदी"
कवयित्री के ईमेल आईडी - lataprasar@gmail.com
प्रतिक्रिया हेतु ईमेल आईडी - editorbejodindia@yahoo.com
No comments:
Post a Comment