Friday 10 November 2017

इ अगहन के महीनमा सबके मतवाला कैले हय / लता प्रासर

झिर झिर हवा बह के सबके मन बहका रहलय हS
जरी जरी जाड़ा लगे लगले हS
इ अगहन के महीनमा सबके मतवाला कैले हय।
अब तो शादियो बिआह के घुनघुनी शुरू होवे लगले हS
ऐसे मे केकरा नय इ सनसनाहट के सुने के मन करतय।
गाम मे तो सगरो धान के कालीन बिछल हय।
जेकरा देख उहे इ कालीन पर घोलटे ल बेचैन हय।
सगरो हरियरका चुड़ा के गंध से मन हरिऐले हय।

जवान जवान बुतरूअन सब इहे धान के महल मे अपन सपना के पंख लगा्वे मे जुटल हखीं। अखनी कहां सुध बुध हय। दु चार गो साथी सब मिल के मनमौजी गप मे डुबकी लगाबे मे लग रह हखीं।

अभीए से बुढ़ा बुढ़ी सब लिहाफ ओढ़े लगलखिन। इनखो सब के खिस्सा सुने मे खुब मन लगS हय। अगहन के महीने अइसन होबS हय। बुतरूअन सब के देख के भितरे भितरे गुदगुदैते रहS हखीं।

जेकर बिआह होबे बला हय ओकर तो कुछ कहने नय हय। अपने मे हंस हय अपने मे लजा हय। जगह जगह मेला लगल हय। बिहार मे दु गो बड़का मेला एगो राजगीर मे एगो सोनपुर मे अगहने मे लगS हय।

जे अगहन के गुन जानS होतखीं । उनको मन सिहर रहले होत।

अगहनिया दुलार सब लगी।
लिखताहर
लता प्रासर
पटना (बिहार)
भारत




Thursday 9 November 2017

सब साथी के स्नेह / लता प्रासर

सबसे पहिले हम उनका सब के परनाम करही जे हमर दुख सुख के अनुभूति के समझे के कोशिश कैलखिन।आज हमरा समझ मे आवे लगलय कि जिनकर करेजा बड़गो होव हय ,उनकर आगे मुह खोले नय पड़ हय।

हम तो अप्पन दुख केकरो नय बतैलिय,बाकि जे हमरा समझ हखिं उ समझ गेलखीं कि हमरा केतना ठेस लगल हय। उनका सब के हम फेर से गोड़ छु के परनाम कर ही।

रहीम जी कहलखिन ह कि ः


रहिमन निजमन की व्यथा मन ही राखो गोय,

सुन अठिलैहे लोग सब बाटि न लैहे कोय।

इहे वचन धियान मे रख के हम आझ तक केकरो से कुछ कहे के साहस नय कैलिय।बाकि आझ हमरा इ जरूर समझ मे आव हय कि जे सहृदयी साथी होव हखीं उ ऐंठे से जादे बचाबे के कोरसिस कर हखी।

आझ सब साथी के स्नेह से हमर करेजा बड़गो हो रहलो ह । तोहनी सब के सहयोग से कुछ करे के लिखे के मन कर हको।

फेर बतिऐबो 
अखनी परनाम
लता प्रासर
लिखताहर
अगहन पचमी अन्हरिया सं. २०७४