Monday 15 January 2018

तीलवा तिलकुटवा न लयिला ए बाबुजी / कवयित्री- लता प्रासर

तीलवा तिलकुटवा न लयिला ए बाबुजी,कउची हम खइबय हो राम
हमरो करेजवा तरसय ए बाबुजी, कयिसे बीततै सकरतिया हो राम

सभे कोय खा हय हरियर चुड़वा ए बाबुजी. हमरा नेमानो नय हो राम
भइया ल छाली भरल दहिया ए बाबु जी, हमरा नय मठबो हो राम

हरियर गदबा के खिचड़ी ए बाबु जी,गद गद पकय हो राम
घीयबा से छौंकल खिचड़िया ए बाबु, चोखबा के साथे सब खाय हो राम

अचरबा पपड़बा सब लेलहो ए बाबुजी, चपड़ चपड़ खैलहो हो राम
सभे बहिनी मुंहबा तकलियो ए बाबुजी, खाय ल करेजबा फटलय हो राम

हमहूँ उड़यिबो गुड्डिया ए बाबुजी, उड़य हमर मनमो हो राम
हमरो करेजवा तरसय ए बाबुजी,कयिसे बीततै सकरतिया हो राम।
.......
कवयित्री- लता प्रासर
ईमेल- kumarilataprasar@gmail.com
प्रतिक्रिया ईहो ईमेल पर भेज सकS ह- hemantdas_2001@yahoo.com

लता प्रासर

3 comments:

  1. मकरसंक्रांति पर्व के उल्लास के मध्य स्त्री के हृदय मर्म, मनोदशा को उजागर करती यह कविता सराहनीय।

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  2. परेम आउ श्रृंगार के मनोभाव के बतौलन्ह ई
    कविता में ।खूबे नीक चित्रण कइलन।
    ऊ बधाई के पात्र हबन।शुभकामना हमरा तरफ
    से ।

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