तीलवा तिलकुटवा न लयिला ए बाबुजी,कउची हम खइबय हो राम
हमरो करेजवा तरसय ए बाबुजी, कयिसे बीततै सकरतिया हो राम
सभे कोय खा हय हरियर चुड़वा ए बाबुजी. हमरा नेमानो नय हो राम
भइया ल छाली भरल दहिया ए बाबु जी, हमरा नय मठबो हो राम
हरियर गदबा के खिचड़ी ए बाबु जी,गद गद पकय हो राम
घीयबा से छौंकल खिचड़िया ए बाबु, चोखबा के साथे सब खाय हो राम
अचरबा पपड़बा सब लेलहो ए बाबुजी, चपड़ चपड़ खैलहो हो राम
सभे बहिनी मुंहबा तकलियो ए बाबुजी, खाय ल करेजबा फटलय हो राम
हमहूँ उड़यिबो गुड्डिया ए बाबुजी, उड़य हमर मनमो हो राम
हमरो करेजवा तरसय ए बाबुजी,कयिसे बीततै सकरतिया हो राम।
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कवयित्री- लता प्रासर
ईमेल- kumarilataprasar@gmail.com
प्रतिक्रिया ईहो ईमेल पर भेज सकS ह- hemantdas_2001@yahoo.com
लता प्रासर |
निमन।
ReplyDeleteमकरसंक्रांति पर्व के उल्लास के मध्य स्त्री के हृदय मर्म, मनोदशा को उजागर करती यह कविता सराहनीय।
ReplyDeleteपरेम आउ श्रृंगार के मनोभाव के बतौलन्ह ई
ReplyDeleteकविता में ।खूबे नीक चित्रण कइलन।
ऊ बधाई के पात्र हबन।शुभकामना हमरा तरफ
से ।